BOSS

यह है असली बिग BOSS

बॉस कहते ही ज़हन में अक्सर अपने उच्च अधिकारी का अक्स उभरता है। वैसे आजकल दोस्ती यारी में भी एक दूसरे को बॉस कहने का चलन हो चला है। बॉस नाम की एक मशहूर कंपनी भी है जो ध्वनि तकनीक से संबंधित उपकरण बनाती है।
इस बॉस शब्द से जुड़े अन्य कई उत्पाद हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ‘बिग बॉस’ उभरा है एक विवादास्पद कार्यक्रम बन कर। पिछले वर्ष तो हम भी इस बिग बॉस से आमना-सामना कर चुके। लेकिन आज बात होगी एक नए बॉस की जिसे सरकार ने जमकर समर्थन दिया है।
यह अनोखा बॉस जुड़ा है कम्प्यूटर की दुनिया से। पिछले दिनों मेरा ध्यान इसकी ओर तब गया था जब लगभग एक ही दिन खबर मिली कि दो राज्य सरकारों ने एकदम अलग-अलग निर्णय लिए हैं इस बॉस के बारे में
तमिलनाडु सरकार ने तो इसे गले लगा लिया लेकिन पंजाब सरकार ने तो वादा कर के भी ऐन वक्त पर मुंह मोड़ लिया।
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BOSS (Bharat Operating System Solutions)
मुझे लग रहा कि अब बता ही दिया जाए कि यह बॉस दर असल Bharat Operating System Solutions है। ऑपरेटिंग सिस्टम किसी भी कम्प्यूटर को चलाने के लिए सबसे ज़रूरी होता है, इसके बिना कम्प्यूटर चलाए जाने की कल्पना करना इस समय तो नामुमकिन है। भारत में सरकारी, गैर-सरकारी कम्प्यूटरों पर Microsoft के Windows का कब्जा है जो खरीदे जाने पर हजारों रूपये का मिलता है लेकिन अधिकतर स्थानों पर इसकी नकल ही चलाई जाती है जो दस रूपए की सीडी में भी मिल सकती है।
नकली सॉफ्टवेयर के कारण रोजाना पता नहीं कितने ही कंप्यूटर दम तोड़ जाते हैं और कितनी ही जानकारियाँ चुरा ली जाती हैं लेकिन फिर भी लोग इसी के भरोसे चला रहे अपना कम्प्यूटर। कम कीमत या मुफ्त सॉफ्टवेयर की चाहत किसे नहीं होती और यह चाहत तब बढ़ जाती है जब उसके सहारे काम आसान लगता हो।
विदेशी संसाधनों पर निर्भरता कम करने की नीयत से अब भारत सरकार ने लिनक्स आधारित एक मुफ्त व मुक्त स्त्रोत ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर BOSS विकसित करवाया है जो C-DAC (Centre for Development of Advanced Computing) द्वारा बनाया गया है। यह हर भारतीय भाषा में उपलब्ध है।
9 नवंबर को भारत सरकार के आधिकारिक आदेश में तमाम आधुनिक आवश्यकतायों और खूबियों वाले इस सॉफ्टवेयर के उपयोग पर जोर दिया है। इसके बाद 14 नवंबर से भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग में सभी कंप्यूटरो पर इसका उपयोग आरंभ हो गया है, इसके पहले ही तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्य के छात्रों को मुफ्त दिए जाने वाले लैपटॉप में, गुजरात सरकार ने 15 हजार स्कूलों के डेढ़ लाख कम्प्यूटरों में, हरियाणा सरकार ने ढाई हजार से ज़्यादा स्कूलों के 52 हजार स्कूलों के कम्प्यूटरों में इसे लागू कर दिया है। बाक़ी सरकारें भी इसी नक़्शे कदम पर चल रहीं।
लेकिन पंजाब सरकार ने पहले लिए गए अपने निर्णय को पलटते हुए फिर से माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज को 5 हजार स्कूलों के 46 हजार कम्प्यूटरों पर तवज्जो दी है। जिसमे करोड़ों रूपए खर्चा होंगे।
इन सभी बातों को देखते हुए लगता है कि बॉस है जहाँ, विवाद है वहाँ!

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