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आभासी मानव

हम भारतीयों के लिए आभासी मानव का सबसे बढ़िया उदाहरण है हालिया लोकसभा चुनाव.  मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश भर में अपने त्रिआयामी होलोग्राफिक  चलते फिरते चित्र के सहारे एक साथ कई कई जगह चुनाव प्रचार किया. भले ही वे सशरीर उपस्थित नहीं थे लेकिन दर्शकों को वे बोलते दिख रहे थे.
यह केवल एक वास्तविक मानव के सशरीर होने का आभास देता ‘प्रसारण’ था. जबकि आभासी मानव या डिजीटल प्रतिरूप, कंप्यूटर जनित ध्वनि और कल्पना का मिश्रण है. किसी चरित्र या मानव का आभास देती, वास्तविक सी लगती काया कंप्यूटर पर बनाई जाती है और फिर उसमें कृत्रिम बुद्धि का मसाला उड़ेला जाता है. जो परिणाम सामने आता है वह ऐसा लगता है जैसे कोई वास्तविक रूप में हमसे बतिया रहा हो वीडियो चैट पर.
आभासी मानव -भविष्य की दुनिया
इस तकनीक का फ़ायदा एक उदाहरण से समझा जाए. यदि कोई आभासी डॉक्टर रूप अपने शर्मीले मरीज़ से उसकी बीमारी के बारे में पूछ रहा हो, परामर्श कर रहा हो तो मरीज खुल कर अपनी बात बता सकता है. जबकि एक वास्तविक,  इंसान डॉक्टर के सामने कोई रहस्य खुल जाने के डर से या स्वाभाविक झिझक के कारण जैसे मानवीय भावनाओं से शायद मरीज खुल ना सके.
ऐसा ही कुछ आभासी टीचर, आभासी इंटरव्यूकर्ता या आभासी बॉस के सामने होने से होगा. मालूम है कि ना तो कोई उठ कर थप्पड़ मारेगा, ना ही कोई चिल्ला कर बदला लेने का डर दिखाएगा. यह कुछ कुछ उस मशीन सरीखा है जो हवाई जहाज के पायलट्स को सचमुच के जहाज उड़ाने के पहले आभासी कॉकपिट में प्रशिक्षित करती है.

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