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ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस

बिना कुछ बताये एक माँ जैसे जान जाती है अपने बच्चों के बारे में या एकाएक लगता है कि किसी ने मुझे पुकारा. इसी आभास को वास्तविकता में बदला जा रहा है ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस कहते हुए
अभी तक आम जीवन में इस तकनीक को हम टेलीपैथी के नाम से पुकारते आये हैं. टेलीपैथी मतलब, बिना किसी भौतिक माध्यम की सहायता के एक इंसान का दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क को पढ़ने अथवा उसे अपने विचारों से अवगत कराने में कामयाब होना. ऐसा अनुभव होता देखा भी गया है.
विज्ञान के अनुसार मृत्यु तो दिमाग की होती है और जब दिमाग ही किसी सुपर कंप्यूटर में उतार लिया गया तो अमर होने की कल्पना कितनी दूर रह जाएगी. जिस दिन इंसानी दिमाग कंप्यूटरों में अवतरित होने लगेगा, उस दिन मानव और मशीन के बीच की दूरी मिट जाएगी. समझदार कंप्यूटरों के आने बाद मशीनें अच्छी बुरी भावनाओं का भी इजहार करने लगेंगी. भले ही इंसानी दिमाग की डाउनलोडिंग अभी कुछ ही वर्ष दूर है लेकिन इन सबसे लिए ज़रूरी है इंसानी दिमाग और कंप्यूटर के बीच संबंध स्थापित करने की तकनीक. वो इंटरफ़ेस जो कम्प्यूटरों को मानवों से ‘बात’ करना आसान करायेगा..
टेलीपैथी -भविष्य की दुनिया
इस विधा के लिए जो एजेंसी अरबों खरबों खर्च कर रही उसी एजेंसी को इंटरनेट की खोज करने का श्रेय प्राप्त है. इस तकनीक के जरिये ही अभी अपंग और लकवाग्रस्त लोग, रोबोटिक बाँह और कंप्यूटर के कर्सर जैसी चीजें हिला पाते हैं. दिमाग को सीधे कंप्यूटर से जोड़ दिए जाने से उन लोगों को काफी मदद मिल सकती है जिनका दिमाग पूरी तरह सक्रिय है लेकिन किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण अपने हाथ-पैरों पर नियंत्रण नहीं रख सकते. ये लोग शरीर पर नियंत्रण इसलिए नहीं रख पाते क्योंकि उनके मस्तिष्क से निकले आदेश शरीर के विभिन्न अंगो तक नहीं पहुँचते.
इस तकनीक को एक आर्गेनिक कंप्यूटर भी कहा जा रहा है जो दुनिया के कई कंप्यूटर मस्तिष्कों को जोड़ कर एक ऐसा जैविक कंप्यूटर बनाएगी जो उन समस्याओं को भी चुटकियों में हल लेगा जिन्हे एक मानव मस्तिष्क हल कर पाने में संभव नहीं.
इस से कई नैतिक सवाल भी खड़े हो गए हैं. इसके जरिये किसी दिन कोई भी रिमोट तकनीक से संचालित होने वाले जानवरों अथवा इंसानों की विशाल सेना तैयार कर सकता है. ऐसे में संभावना है कि तकनीक से लैस मशीनें, इंसानों के खिलाफ विद्रोह कर दें. भले ही इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों का मशीनी समाज अभी हमारे हाथ में है लेकिन दस-बीस साल बाद हमें यह नियंत्रण हासिल हों जरूरी नहीं. अरे! तब मशीनों की दुनिया के भी अपने कुछ कायदे-कानून नहीं हो सकते क्या? हो सकता है उनमें दखल की इजाजत हम नाकारा हो चुके इंसानों को मिले ही नहीं !!

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