नदियों में पानी नहीं… बिजली ना बन पायेगी, कोयला नहीं … बिजली ना बन पायेगी, गैस नहीं… बिजली ना बन पायेगी. परमाणु ऊर्जा का उत्पादन भी नहीं हो पायेगा! ऐसे संकट के सामने तो सरकारें भी बेबस ही होंगी.
परम्परागत साधनों पर दिख रहे दबाव का असर हो या ऊँची लागत या फिर पर्यावरण की चिंता! अब बिजली के लिये लीक से हटकर उपाय तलाशे जा रहे. पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा जैसे स्रोतों का बड़े पैमाने पर अनुसंधान जारी हैं.
इनमें से सौर ऊर्जा की जाए तो तो इसके उपकरण बहुत महंगे हैं और सूर्य केवल दिन में सिर्फ बारह घंटे ही चमकता है. मतलब रात को केवल अंधेरा. एक सवाल और भी है! बारिश, सर्दी के मौसम के समय कई इलाकों में तो सूरज कई-कई दिन तक नहीं उगता !! फिर !?

इन्हीं सब मुद्दों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल निकालना शुरू कर दिया है. बढ़िया विकल्प यह देखा गया कि अंतरिक्ष में सूरज की गर्मी का दोहन किया जाये और धरती पर भेज दिया जाए. कोशिश इतनी कामयाब रही कि र॓डियो तरंगों की तरह बिजली को वायरलैस की तरह एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा सका.
यह तकनीक संचार उपग्रहों की तकनीक पर आधारित है इसलिए काफी विकसित है। अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे उपग्रह, सोलर पैनलों के सहारे सूर्य की रोशनी से बिजली बनाकर उसे र॓डियो आवृत्ति में बदल कर संचार तरंगों से धरती पर स्थापित रिसीवर तक पहुंचाते हैं.
अनुसंधानों से यह तो साबित हो गया है कि र॓डियो तरंगों को बिजली तरंगों में बदलने में 90 प्रतिशत तक सफलता मिल सकती है जबकि ताप विद्युत या परमाणु ऊर्जा संयंत्र में ईंधन के केवल 33 प्रतिशत ऊर्जा को ही बिजली में बदला जा सकता है. इस तकनीक से ही मिलती-जुलती तकनीक, डीटीएच की है.
इस तरह की तकनीक विकसित की जायेगी, ताकि सूर्य की ऊर्जा को फोटोवोल्टिक पैनल के जरिये माइक्रोवेव्स में परिवर्तित कर सके. इन माइक्रोवेव्स को धरती पर स्थापित पावर स्टेशनों को भेजा जायेगा.
पावर स्टेशनों तक पहुंचनेवाली ऊर्जा को उपभोक्ताओं तक भेजा जायेगा. इस प्रणाली से हासिल होनेवाली ऊर्जा धरती पर पैदा की जानेवाली किसी भी अन्य ऊर्जा की तुलना में ज्यादा सस्ती होगी. यदि यह परियोजना सफल होती है तो अंतरिक्ष में इसके लिए छोटे तत्वों के हजारों प्लेटफॉर्म बनाये जा सकते हैं, ताकि वायरलेस पावर ट्रांसमिशन के जरिये 10 से 1,000 मेगावॉट तक ऊर्जा धरती पर भेजी जा सके.
इस तकनीक में सक्रिय सहभागिता के लिए भारत ने अमेरिका की एक शीर्ष विज्ञान संस्था के साथ मिल कर अंतरराष्टीय संगठन बनाया है जो अंतरिक्ष सौर ऊर्जा पौद्योगिकी का विकास करेगा और सूर्य की ऊर्जा को फोटोवोल्टिक पैनल के जरिये माइक्रोवेव्स में परिवर्तित कर धरती पर स्थापित पावर स्टेशनों को भेजा जायेगा. चीन भी इस भविष्य की तकनीक के लिए भारत को सहयोग का प्रस्ताव दे चुका है.
इस प्रणाली से हासिल होने वाली ऊर्जा धरती पर पैदा की जानेवाली किसी भी अन्य ऊर्जा की तुलना में 6 गुणा ज्यादा सस्ती होगी. फिर तो निकट भविष्य में तेल-गैस आदि की कीमतें गिर जाएंगी 

मैं कल्पना कर रहा हूँ जिस दिन बिना कोयले, पानी और परमाणु वाली बिजली हमारी अगली पीढ़ियाँ उपयोग करेंगी, उस दिन हमारी धरती का पर्यावरण कितना स्वच्छ होगा.
जिज्ञासुओं के लिए ये दो दस्तावेज़ बहुत अच्छे हैं. Space-Based Solar Power System तथा Solar Power in Space
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